Tuesday 31 December 2013

मन विजय



मन उदास बैठा था रूठा

सोचा कैसे इसे मनाऊं

कौन कौन से झूठ मैं बोलूं

कितने सच को फिर दफनाऊं

मन की ये बीमारी तो नित रोज है बढ़ती जाएं

क्षण संभले,क्षण टूटे, बिखरे..फिर पल में ही जुड़ जाए।

मन को वश में करने के करते हैं लाख उपाय

पर मन के दरिया में वो सब तिनके से बह जाएं।

कोई बांधे, कोई भूले कोई ध्यान का झूला झूले

पर मायावी मन के आगे इन शस्त्रों की एक न चले।

मन का राजा बनना है तो कुछ करना होगा दूजा

इस तिकड़मी दुनिया में तुमको बनना होगा बच्चा।

मन भी पीछे पीछे फिर एक बच्चा सा हो जाएगा

चंचल होगा, नटखट होगा पर नेक दिल कहलाएगा।

न छल कपट की नदिया होगीं, न बैर का होगा साया

न लालच के फल पनपेंगे, न चिंता न भय और माया।

जीवन खेल खिलौनों सा फिर रंग-बिरंगा होगा,

मन का घोड़ा भी होगा साथी अपना, सही दिशा दौड़ेगा।




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