मॉं मैं तो सोई थी,
दुनिया में आने के सपनों में खोई थी।
देखा था मैंने तेरी उंगली अपनी बंद मुठ्ठी
में,
तेरे आंगन में गिरना संभलना,
पापा के कंधे पर दुनिया की सैर,
दादी की वो झूठी-सच्ची कहानी,
जिन्हें सुनकर सोती तेरी बिटिया रानी।
गुडिया-गुड्डे की शादी रचाना,
किताबों का बस्ता,फिर रोना मनाना।
पापा का बेटा भी बनना था मुझको,
भीड़ से अलग था कुछ करना मुझको।
तभी किसी ने झकझोर कर जगा दिया,
तेरी कोख़ से मुझको बाहर गिरा दिया।
मेरे सपने भी वहीं गए थे बिखर,
मैं बहुत छटपटाई थी, रोई थी, घबराई थी,
हाथ भी था बढ़ाया,
पर वहां सिर्फ डर था, और था घोर अंधेरे का
साया।
मां!
अगर मुझसे यूं ही था मुंह मोड़ना,
तो नहीं था तुझे कुछ पल का भी नाता
जोड़ना।
Really nice.....:)
ReplyDeletethanks priya
ReplyDelete