Tuesday, 9 July 2013

फिर हो गया प्यार

संडे की सुबह … घड़ी की टिकटिक नौ बजा रही है...सूरज की रोशनी पर्दों को चीरती हुई पूरे कमरे में फैल गई थी..पर रेवती चादर तान कर अभी तक सो रही थी..उसकी रूममेट कल्पना ने खिड़कियों से पर्दे हटा दिए, फ़ुल वॉल्यूम पर रेडियो चला दिया..पर रेवती शायद कानों में रूई डाल कर सो रही थी..कल्पना ने उसकी चादर खींचते हुए फिर से एक कोशिश की..अरे उठ जा कुम्भकर्ण..कब तक सोएगी..लैंडलॉड को किराया देने जाना है..पर रेवती की नींद में कोई ख़लल नहीं.. तभी रेवती का मोबाइल बज उठा....मोबाइल की घंटी से रेवती की नींद छूमंतर हो गई वो झट से उठी और चादर के नीचे दबा मोबाइल उठाकर बालकनी की तरफ दौड़ी। कमरे में अक्सर नेटवर्क प्रोब्लम रहती है..और जब फ़ोन अभय का हो तब तो रेवती को कोई भी डिस्टर्बेंस नहीं चाहिए...बालकनी में पहुंचकर चहकते हुए रेवती ने फ़ोन उठाया आज सुबह सुबह याद आ गई ।..दूसरी तरफ से अभय की अलसाई हुई आवाज़ आई-सुबह क्या तुम्हारी याद में तो रातभर नहीं सो सका..ना जाने क्यों आज बहुत याद आ रही हो.. बस सुबह होने का इंतज़ार कर रहा था कि कब सुबह हो और तुम्हें फ़ोन करूंअच्छा अब जल्दी से बताओ कहा मिल रही हो” - अभय ने रेवती के कुछ और कहने से पहले अपने दिल की सारी बात कह दी। अपने लिए अभय की बेचैनी देखकर रेवती थोड़ा शरमा गई...हाथों से बालकनी की रेलिंग पर पड़ी ओस की बूंदों को नीचे गिराते...अपनी जुल्फों को कान के पीछे दबाते हुए  बस अभय की बातें सुने जा रही थी..अपनी तारीफ़ सुनना किसे पसंद नहीं..और जब तारीफ़ कोई अपना चाहने वाला करें..तब तो बस यहीं दिल करता है कि ये वक्त यहीं थम जाए...। रेवती की तरफ से कोई जवाब न मिलने पर अभय ने चिल्लाकर कहा अरे कुछ बोलों तो.... रेवती तब शायद पूरी तरह नींद से जागी ...हां..हां..सुन रही हो...और अगर इसी तरह मेरी तारीफ़ करते रहो तो ज़िंदगी भर तुम्हारी बातें सुनने को तैयार हूं दोनों की ये प्यारभरी बातें 20 मिनट तक चलती रही...दोनों ने दोपहर दो बजे अंसल प्लाज़ा में मिलने का तय किया। रेवती बालकनी से अंदर आते ही सीधे नहाने के लिए बाथरूम में घुस गई। बाथरूम से ही कल्पना को आवाज़ लगाकर बता दिया कि वो अभय से मिलने जा रही है..। मुझे पता था कि मैडम की सवारी संडे को बस एक ही तरफ चल देती है..पर अंकल को मकान का किराया देने जाना है उसका क्या कल्पना टी.वी के सामने से उठी...अपनी चाय का कप टेबल पर रखा और बाथरूम के दरवाजे के पास आकर खड़ी हो गई। कल्पना पिछले एक साल से रेवती की रूममेट है.. और अक्सर घर के सारे काम उसी के ज़िम्मे आते हैं..क्योंकि रेवती जब घर में होती है..तब फ़ोन पर अभय के साथ बिज़ी रहती है..और छुट्टी के दिन भी उसे अभय से मिलने बाहर जाना होता है....हर बार की तरह इस बार भी रेवती ने अपनी प्यारी बातों से कल्पना को मना ही लिया...थैंक्यू यार थैंक्यू सो मचतू सच में बहुत प्यारी हैरेवती ने कल्पना को गले लगा लिया..फिर जल्दी से तैयार होने अपने कमरे में चली गई..कौन से कपड़े पहनूं..बाल कैसे बनाऊं..इसी उधेड़बुन में अलमारी के सारे कपड़े बेड पर बिखेर दिए..पूरे 20 मिनट लगाकर तय किया कि नीले रंग का सूट पहनकर जाना है..नीला अभय का पसंदीदा रंग जो है..और रेवती के पास सबसे ज़्यादा कपड़े शायद नीले रंग के ही हैं। नज़र घड़ी पर पड़ी तो उसने उंगली दांतों में दबा ली..हमेंशा की तरह इस बार भी वो लेट हो गई। फटाफट चप्पलें पहनी और निकल पड़ी... मिलने की बेताबी ऐसी कि चप्पलें भी अलग अलग रंग की पहन ली थी वो तो अच्छा हुआ जो कल्पना ने ठोक दिया। उधर अभय भी पूरी तैयारी के साथ निकला..रेवती के पसंदीदा पिंक रोज़ेज़ और चाकलेट्स के साथ।... आज दोनों एक दूसरे को देखे बिना दो दिन नहीं बिता सकते पर पांच साल पहले एक दूसरे से बिल्कुल अंजान थे..हां..उनके बीच दो चीज़े कॉमन थी..एक तो उनका इंजीनियरिंग कॉलेज और दूसरा ये कि दोनों इलाहाबाद से थे। कॉलेज में हज़ारों की भीड़...पर फिर भी दोनों को एक दूसरे का साथ अपना सा लगता था..कॉलेज के चार सालों में दोनों अच्छे दोस्त बने और कॉलेज के बाद ज़िदंगी भर एक दूसरे का साथ निभाने का वादा भी कर लिया।
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अंसल प्लाज़ा के बसस्टॉप पर खड़ा अभय कभी घड़ी की ओर देखता और कभी सामने से गुजरते ट्रैफिक को, तभी रेवती का ऑटोरिक्शा आकर रूका। रेवती हमेशा की तरह इस बार भी लेट थी..पर उसके खूबसूरत चेहरे पर मासूम हंसी देखकर अभय कुछ न कह सका। पास आते ही अभय ने रेवती का हाथ थाम लिया..ये क्या कर रहे हो”? -रेवती ने तुरंत हाथ पीछे खींचते हुए कहा, अरे सड़क पार नहीं करना क्या..तुम्हें डर लगता है न इसलिए पकड़ा अभय के जवाब से रेवती थोड़ा शरमा गई। दोनों सड़क पार करके अंसल प्लाज़ा गए और वहां एक रेस्टोरेंट में लंच ऑडर किया। आस-पास बैठे लोगों से बिल्कुल अंजान दोनों बस एक दूसरे की आंखों में खोए थे...अच्छा शादी कब करना हैअचानक अभय ने रेवती के सामने एक प्रस्ताव रखा। रेवती ने शायद अभी इस सवाल की उम्मीद नहीं की थी..खाते खाते उसे खांसी आ गई..क्या कहा तुमनेपानी के ग्लास से एक घूट अंदर करते हुए रेवती ने पूछा।  वही जो तुमने सुना..अभय ने अपना चम्मच प्लेट में रखते हुए कहा। देखो शादी तो करनी ही है हमें..इसमें जल्दी और देर क्या फिर इस तरह मिलने के लिए संडे की छुट्टी का इंतज़ार तो नहीं करना होगा..फिर तो हर सुबह उठने के बाद और रात में सोने से पहले तुम्हारा चेहरा सामने होगाअभय ने रेवती की आंखों में झांकते हुए कहा। पर अभय शादी कब करना है..कैसे करना है ये सब तय करने के लिए हमें घरवालों से बात करनी होगी..यूं ही अचानक हम कैसे सबकुछ डिसाइड कर सकते हैं..रेवती थोड़ा परेशान हो गई थी।रेवती की बातें सुनकर अभय उठा और सीधे रेस्टोरेंट से बाहर निकल गया..रेवती घबरागई..उसे लगा शायद अभय नाराज़ हो गया है..वो खुद को कोसने लगी कि आखिर इतना कुछ कहने की क्या ज़रूरत थी..रेवती ने बिना वक्त गंवाए मोबाइल उठाकर अभय को फ़ोन लगाया..सोचा सॉरी बोल दूंगी...तभी अभय वापस अंदर आते हुए दिखा। पर अभय के साथ कुछ और लोग भी थे..रेवती और अभय के मम्मी पापा। अभय ने रेवती को बिना बताए उसके और अपने पैरेंट्स को दिल्ली बुला लिया थी...रेवती को सरप्राइज़ देने के लिए..। अपने मम्मी-पापा को सामने पाकर रेवती छोटे बच्चों की तरह उछलने लगी..पर अगले ही पल नज़र अभय के पैरेंट्स पर गई तो खुद पर काबू कर उन्हें नमस्ते किया। दोनों परिवारों ने साथ बैठकर खाना खाया..फिर आखिरकार मि. तिवारी यानी रेवती के पापा ने उनके दिल्ली आने का मकसद बता ही दिया। बेटा हमने तुम दोनों की शादी की तारीख तय कर दी हैरेवती के पापा ने रेवती की ओर देखकर कहा। अगले महीने की 12 तारीख कोरेवती की मां ने आगे जोड़ दिया। रेवती को अब समझ आया कि अभय ने अचानक शादी की बात क्यों छेड़ी थी। बेटा जब दोनों ने साथ रहने का फैसला कर ही लिया है..तो अब शादी भी कर लो..और फिर हमें भी ये फिक्र नहीं सताइये कि तुम दिल्ली में अकेली रह रही हो..अभय तुम्हारे साथ होगा तो हम भी इलाहाबाद में चैन से रह सकेंगें रेवती के पापा ने पानी का गिलास रखते हुए कहा। परिवारवालों ने दोनों के बीच की सारी दूरियां कम कर दी...दोनों ने सभी से नज़रे चुराकर एक दूसरे की आंखों में शादी के हज़ार सपने बसा दिए...एक छोटा सा घर..प्यार करने वाले दो दिल..और ढ़ेर सारी मोहब्बत।
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अभय और रेवती शादी के बंधन में बंध गए...रेवती मिस तिवारी से मिसेज चतुर्वेदी बन गई थी..लेकिन उसे अपना सरनेम बहुत प्यारा था इसलिए उसने अभय से पहले ही कह दिया था कि वो शादी के बाद भी अपना सरनेम नहीं बदलेगी। अभय को इसमें कोई एतराज़ नहीं था। दोनों की शादीशुदा ज़िंदगी की गाड़ी पटरी पर दौड़ रही थी। रेवती ने शादी के कुछ महीनों बाद अपनी इंजीनियरिंग की जॉब से कुछ समय के लिए ब्रेक ले लिया...वो एमटेक करना चाहती थी...अभय ने भी उसका साथ दिया। उसे पूरा भरोसा दिलाया कि वो बिना किसी टेंशन के अपनी पढ़ाई करे..वो उसकी हर मदद करेगा..रेवती बहुत खुश थी उसे ऐसा जीवन साथी मिला जिसने उसके सपने को अपना सपना बना लिया और जो उसे बहुत प्यार करता है..रेवती घर पर अपने सपनों को पूरा करने में लग गई..और अभय ऑफिस के अपने काम में व्यस्त। एक दिन सुबह अभय ऑफिस जाने के लिए तैयार हो रहा था। रेवती किचन से चाय का कप और प्लेट में ब्रेड बटर लेकर आई...। ब्रेड बटर देखकर अभय का मूड ख़राब हो गया..यार प्लीज़ अब नहीं..रोज़..रोज़ ब्रेड बटर..तुम्हें पता है न मुझे ब्रेड बिल्कुल पसंद नहीं..फिर क्यों पिछले चार दिनों से तुम मुझे यही खिला रही हो। उधर गीला तौलिया बेड पर पड़ा देखकर रेवती का मूड ख़राब हो गया..अभय मुझे अपनी कोचिंग क्लासेस जाना है..इसलिए जल्दी में बस यही बना सकती हूं..पर तुमने ये गीला तौलिया यहां क्यों रखा हैगुस्से में रेवती ने गीला तौलिया उठाया और बालकनी में फैलाने चली गई। अभय तैयार होकर ऑफिस चला गया और रेवती कोचिंग क्लासेस। अब अक्सर सुबह अभय और रेवती के बीच खट्ठी मीठी तकरार होने लगी पर ये तकरार कब कड़वी होने लगी इसका पता उन दोनों को भी नहीं चला।..... संडे की सुबह अभय सोफे पर बैठकर अखबार के पन्ने पलट रहा था और पास ही दीवान पर बैठी रेवती अपनी किताब के। अभय मुझे पांच हज़ार रूपये चाहिए बुक्स खरीदनी है.रेवती ने अपनी किताब रखते हुए कहा।.... पर अभी पिछले महीने ही तो दस हज़ार रूपये बुक्स के लिए तुम्हें दिए थे तुम्हेंअभय ने अखबार के पीछे से झांकते हुए कहा...रेवती को अभय का ऐसा पूछना अच्छा नहीं लगा..उसे लगा अभय उसकी पढ़ाई के खर्च का हिसाब मांग रहा है..पर फिर भी बिना नाराज़ हुए उसने अभय को बताया कि वो पैसे उसने अपनी फ़ीस में दे दिए...।. ओह हो..तुम्हारी पढ़ाई का खर्च..फिर घर के खर्चे..इलाहाबाद से पापा का भी फ़ोन आया था..कुछ पैसे भेजने हैं..कैसे होगा सब..बड़बड़ाते हुए अभय बेडरूम में गया..रेवती भी अभय के पीछे पीछे गई..अभय ने अलमारी से पैसे निकालकर रेवती के हाथ में थमा दिए, देखो रेवू..अब अगर और पैसों की ज़रूरत हो तो तुम्हें अपनी सेविंग्स से निकालने होंगे..मेरी इस महीने की सेलरी अब खत्म हो गई..और अभी तो महीना ख़त्म होने में दस दिन बाकी है। रेवती ने अभय की बातों को अनसुना कर दिया..और वापस ड्रॉइंगरूम में आकर अपनी किताबों में उलझ गई। अभय तैयार होकर बाहर जाने लगे..रेवती से भी साथ चलने को कहा..पर रेवती ने मना कर दिया..उसे कोचिंग में होने वाले टेस्ट की तैयारी करनी थी...अभय को थोड़ा बुरा लगा..उसने जता भी दिया कि अब रेवती के पास उसके लिए बिल्कुल वक्त नहीं है..और दरवाज़ा खोलकर बाहर चला गया। दो प्यार करने वालों के बीच शादी के बाद अक्सर बहुत कुछ बदलता है..पर बदलने को न अभय तैयार था..न रेवती ।
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अभय और रेवती की पहली एनिवर्सिरी भी आ गई...रेवती बहुत खुश थी..अभय को सरप्राइज़ देने के लिए बहुत सी तैयारी की थी उसने...अभय के लिए अपने हाथों से एनिवर्सरी कार्ड बनाया..सुंदर सा बुके लाई..और एक गिफ़्ट भी...पूरे घर की साफ सफाई की, नए पर्दे..नई चादरें..फूलदान में महकते फूल..अभय की पसंदीदा जलेबियां भी बनाई थी। अभय देर रात ऑफिस से आया पर उसने उन चीज़ों की तरफ देखा तक नहीं..कपड़े बदले और आराम से लेट गया..रेवती अभय के पास आकर बैठ गई..बड़े प्यार से अभय के माथे पर हाथ फेरा..पर अभय ने तुरंत उसका हाथ दूर कर दिया..बड़ा अजीब था रेवती के लिए ये सब..वो समझ नहीं पा रही थी कि आखिर अभय ऐसा क्यों कर रहा है..वो उससे नाराज़ है..या फिर उसे याद ही नहीं कि कल हमारी शादी का एक साल पूरा होने जा रहा है..रेवती के मन में सवालों का तूफान था..और आंखों में आंसुओं का एक शांत समंदर...उसने एक बार फिर से कोशिश की अभय के करीब जाने की..तुमने मुझे विश नही किया..भूल गए न..कल हमारी एनिवर्सिरी है ... रेवती ने अभय को जगाने की कोशिश की...हटो यार एनिवर्सिरी कल है न..तो फिर आज तो चैन से सोने दो..अभय ने रेवती को झिड़क दिया..रेवती की आंखों का शांत समंदर अब बह निकला..उसने फिर कुछ भी नहीं कहा चुपचाप अभय के बगल में आकर लेट गई..पर सो नहीं पाई वो उस रात...
..अगली सुबह रेवती अभय से पहले उठी..संडे का दिन अभय का वीकली ऑफ..इसलिए वो आराम से सोता रहा...रेवती ने नहाकर भगवान की पूजा की और चाय का कप लेकर ड्रॉइंगरूम में जाकर सोफे पर बैठ गई...अभय मुंहहाथ धोकर वहां पहुंचा और न्यूज़ पेपर लेकर बैठ गया..टीवी चलाई और न्यूज़ चैनल देखने लगा...तभी उसके दोस्त संजय का फोन आया वो बरेली से दिल्ली आया हुआ था..संजय ने अभय से मिलने को कहा और अभय ने भी बिना देरी के हां कह दी। संजय से बात ख़त्म करके जब अभय ने रेवती की ओर देखा तो..उसकी आंखें हज़ार सवालों के साथ अभय को घूर रही थी.. अभय ने रेवती से नज़रे चुराने में ही भलाई समझी..रेवती को देखे बिना ही अलमारी से कपड़े निकालने लगा..देखो जानू..अब संजय को हां कर दी है तो जाना ही पड़ेगा..वो आज रात ही वापस जा रहा है..मैं बस दो घंटे में लौट आऊंगा..तुम तैयार रहना..हम डिनर के लिए बाहर चलेंगे..फिर तुम्हारे लिए कोई अच्छी सी गिफ़्ट भी तो लेनी हैअभय ने सारी प्लानिंग बता दी..पर रेवती ने कुछ नहीं कहा..वो चुप थी..अभय संजय से मिलने चला गया।..शाम से रात हो गई..पर अभी तक अभय वापस नहीं आया..रात आठ बजे डोर बेल बजी..तो रेवती ने दरवाज़ा खोल दिया..दरवाजे पर अभय था..तुम तैयार नहीं हुई..? अभय ने रेवती को देखते ही पूछा मुझे कहीं नहीं जाना है..रेवती ये कहते हुए अंदर आ गई।
अभय भी रेवती के पीछे पीछे गया..उसे मनाने के लिए..पर बहुत देर हो चुकी थी पिछली रात से शांत पड़ा रेवती के गुस्से का ज़्वालामुखी फट पड़ा।
मैं कोई ऑफिशियल मीटिंग नहीं हूं जिसे निपटाना ज़रूरी है..मैं तुम्हारी बीवी हूं अभय..मुझे तुम्हारा वक्त चाहिए..केयर चाहिए..रेवती ने बेडरूम में जाकर दरवाज़ा बंद कर लिया।
अभय देर तक दरवाज़ा थपथपाता रहा..पर दरवाज़ा नहीं खुला..अब बहुत हुआ रेवू..तुम्हें बुरा क्यों लग रहा है..तुम्हारे पास भी तो मेरे लिए वक्त कहॉं हैअभय ने रूठी हुई रेवती को मनाने की ज़्यादा कोशिश नहीं की..लाइट्स ऑफ की..और वहीं ड्रॉइंगरूम के सोफे पर सो गया। रेवती को लगा कि अभय सिर्फ उसे ही दोषी ठहरा रहा है..क्या वाकई ग़लती उसकी है..या अभय जानबूझ कर ऐसा कर रहा है..इसी उधेड़बुन में...रेवती रात भर कमरे के दरवाजे के पास बैठी रही..आंखों से आंसू बहते रहे...सबकुछ पहले जैसा होगा या नहीं..ये सवाल रेवती के दिल और दिमाग में घूमता रहा। सुबह तो होगी पर क्या वो फिर से पहले जैसी खूबसूरत होगी...
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दो महीने बीत गए..आज रेवती बहुत खुश थी...बात ही खुशी की थी रेवती मां बनने वाली है..और उसे आज ही इसका पता चला...वो अभय के ऑफिस से आने का इंतज़ार करने लगी..फिर सोचा शाम तक नहीं रूक सकती..अभय को अभी ये खुशखबरी सुना देती हूं..रेवती ने अभय को फ़ोन किया..बड़े दिनों बाद ऑफिस में रेवती का फ़ोन देख अभय थोड़ा घबरा गया..क्या हुआ..कोई प्रॉबलम है”? अभय ने फ़ोन उठाते ही पूछा। अभय तुम पापा बनने वाले हो..रेवती ने बिना वक्त गंवाए..अभय को खुशख़बरी सुना दी...। अभय को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ..खुशी से चिल्ला उठा वो..ऑफिस के सारे लोग उसकी तरफ देखने लगे रेवू मैं बता नहीं सकता मैं कितना खुश हूं..अभी घर आता हूं मैं.. अभय ने ऑफिस से छुट्टी ली..और फिर ढ़ेरों खिलौने और मिठाई लेकर घर पहुंच गया। दरवाजा खुलते ही रेवती को गोद में उठाकर झूमने लगा अभय.. थैंक्यू सो मच रेवू..मुझे इतनी बड़ी खुशी देने के लिए...अभय ने रेवती का माथा चूमा और उसे बाहों में भर लिया..। अभय को अब हर वक्त रेवती की फिक्र रहती थी..उसका खाना-पीना..रेगुलर चेकअप्स..टेस्ट..। तीन महीने बीत गए..रेवती को अक्सर दिक्कत रहती थी..कभी जी मिचलाना..कभी चक्कर...कभी उल्टियां..।अभय ने तय किया कि कुछ दिनों के लिए वो रेवती को इलाहाबाद अपनी फैमिली के पास छोड़ आएगा..जिससे उसकी अच्छी देखभाल हो सके..पर रेवती जाने के लिए तैयार नहीं हुई..वो अभय के साथ ही रहना चाहती थी। उस दिन अभय की नाइट शिफ़्ट थी....वो बेडरूम में तैयार हो रहा है..तभी बिल्कुल पस्त हालत में रेवती बाथरूम से बाहर आई..और सीधे बिस्तर पर लेट गई..शाम से तीसरी बार उसे उल्टी हुई थी...
क्या हुआ...फिर से उल्टी? अभय ने अलमारी से अपने मोजे निकालते हुए पूछा।
 “आज रूक नहीं सकते... (रेवती ने बड़ी हिम्मत करके अभय से पूछा...)
बिल्कुल नहीं..यार वहीं बातें कहा करो..जो पॉसिबल हो..रोज रोज ऑफिस से छुट्टी नहीं मिल सकती... तुमसे कितनी बार कह चुका हूं कि इलाहाबाद चली जाओ..वहां तुम्हारी फैमिली भी है और मेरी भी सब तुम्हारा ख्याल रख लेगें..पर तुम यहीं रहना चाहती हो। अब जब फैसला तुम्हारा है तो हिम्मत तो दिखानी ही होगी।... अच्छा जब थोड़ा ठीक लगे तो दरवाज़ा बंद कर लेना अभय ने बाहर निकलते हुए कहा।
रेवती ने अभय को कोई जवाब नहीं दिया बस मन में बुदबुदाया कि इस वक्त सबसे ज़रूरी साथ तुम्हारा है अभय....सिर्फ तुम्हारा। कुछ देर बाद रेवती ने उठकर दरवाज़ा बंद किया.. सोने की कोशिश करने लगी..बार-बार अपने मोबाइल की तरफ देखती..शायद अभय फोन करे और तबियत पूछे...न जाने कब उसकी आंख लग गई और वो सो गई...सुबह कामवाली बाई ने जब डोर बेल बजाई तो उसकी आंख खुली..सबसे पहले अपना मोबइल उठा कर देखा..पर न कोई मैसेज..न मिस्ड कॉल..दरवाज़ा खोलकर ड्रॉइंग रूम में आकर सोफे पर बैठ गई रेवती
क्या हुआ दीदी..तबियत ठीक नहीं है क्या आपकीमीनू ने डाइनिंग टेबल से जूठे बर्तन हटाते हुए पूछा।
रेवती ने बस हां में सिर हिला दिया।
और भइया..ऑफिस चले गएमीनू ने हमदर्दी जताते हुए पूछा।
रेवती ने फिर से हां में सिर हिला दिया और मीनू को नाश्ते में पोहा बनाने का टेबल पर फैले न्यूज़पेपर समेटने लगी..रेवती ने देखा अभय कल रात अपना मोबाइल घर पर ही भूल गया था..न्यूज़पेपर्स के नीचे दबा पड़ा था। रेवती को खुद पर बहुत गुस्सा आया..मोबाइल यहीं है तो अभय मुझे फ़ोन या मैसेज कैसे करता..रेवती ने खुद को समझाया। रेवती वहीं सोफे पर बैठ गई..और अभय का मोबाइल ऑन करके..उसके मैसेजेस चेक करने लगी...उसे पता है कि किसी का फ़ोन देखना ग़लत है..पर एक पत्नी का मन उस पर हावी था।..मोबाइल के ड्राफ्ट बॉक्स में बहुत से अनसेंड मैसेजेस पड़े थे...सारे मैसेज अभय ने रेवती के लिए टाइप किए थे...रेवती ने एक मैसेज पढ़ा.. रेवू मुझे तुम्हारी बहुत फिक्र है..मैं एक भी मिनट तुम्हें अकेला नहीं छोड़ना चाहता..पर नौकरी भी नहीं छोड़ सकता..आजकल ऑफिस में बहुत प्रॉबलम चल रही है..थोड़ी सी लापरवाही दिखाने पर नौकरी से हाथ धोना पड़ सकता है...और मैं ऐसा कुछ नहीं चाहता क्योंकि मेरी नौकरी से ही तुम्हारा और हमारे आने वाले बच्चे का फ़्यूचर जुड़ा है। क्या करू..तुम्हारी ठीक से देखभाल भी नहीं कर पा रहा। मैसेज पढ़कर रेवती की आंखों में आंसू भर आए..पर मीनू सामने काम कर रही थी..इसलिए उसने खुद पर काबू किया...मन ही मन सोचा कि अभय पर उसका भरोसा कम कैसे हो गया..प्यार तो रिश्तों को मजबूत करता है..फिर मेरा प्यार...इतना कमज़ोर कैसे पड़ गए... 
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मीनू अपना काम करके चली गई...रेवती ने अभय की मां को फ़ोन किया और बताया कि वो इलाहाबाद आना चाहती है.. रेवती के अचानक आने की बाद सुनकर मिसेज चतुर्वेदी थोड़ा घबराई..पर रेवती ने उन्हें समझा दिया कि वो दिल्ली में अकेले बोर हो रही है..इसलिए कुछ दिनों के लिए परिवार वालों के साथ रहना चाहती है...अभय ऑफिस से घर वापस आया तो रेवती बैग पैक करने में बिज़ी थी..अरे ये तुम सामान क्यों पैक कर रही होअभय ने कमरे में घुसते ही पूछा घर जा रही हूं मैं...रेवती ने बैग में कपड़े रखते हुए जवाब दिया। अचानक क्यों..अच्छा..कल रात की बात से नाराज़ होअभय ने रेवती के गले में हाथ डालते हुए पूछा।नहीं..ऐसी कोई बात नही हैं..बस कुछ दिनों के लिए जा रही हूं..फिर वापस आ जाऊंगी। अभय ने रेवती को जाने से रोकने की कोशिश की..फिर उसे लगा शायद रेवती परिवार वालों को याद कर रही है..इसलिए वो मान गया। दो दिन बाद अभय का भाई आया और रेवती उसके साथ इलाहाबाद चली गई..रेवती को स्टेशन छोड़ कर अभय वापस घर आ गया..पानी पीने के लिए डाइनिंग टेबल पर रखा पानी का जग उठाया तो उसे जग के नीचे रखा एक ख़त मिला..ख़त रेवती ने जाने से पहले लिखा था..अभय, सबसे पहले तो सॉरी..उन सभी बातों के लिए जिसकी वजह से तुम्हारा दिल दुखा..अभय शादी के बाद मैंने सिर्फ अपने सपनों के बारे में सोचा..तुम्हारी मुझसे क्या उम्मीदें हैं इस बारे में तो सोचा ही नहीं..शादी के बाद बहुत कुछ बदल जाता है..पर मैने बदलने की कोई कोशिश नहीं की..बिना जाने समझे बस तुम्हें ही दोष देती रही..पर आज तुम्हारे मोबाइल ने मुझसे वो सब कुछ कह डाला..जो तुम नहीं कह सके। अभय एक बार अपने दिल की बात कहने की कोशिश तो करते तुम...तुम्हारी रेवू तुम्हें कमज़ोर पड़ते नहीं देखना चाहती.. मैं आज भी तुमसे बहुत प्यार करती हूं..। तुम्हारी रेवू।
रेवती का ख़त पढ़कर अभय की आंखे झलक आई..उसने तुरंत रेवती को फ़ोन किया  कि वो कल ही उसे वापस लेने इलाहाबाद आ रहा है..। रेवती ने अभय को समझाया कि वो कुछ दिनों में खुद ही वापस आ जाएगी..इस वक्त अभय को सिर्फ अपने काम पर ध्यान देना चाहिए..और उसके इलाहाबाद जाने की वजह भी यही है कि ताकि उसके चक्कर में अभय को ऑफिस से कोई दिक्कत न हो..और वो मन लगाकर काम कर सके। अभय मान गया फिर एक दबी हुई आवाज़ में कहा.. .मैं..मैं ..तुमसे माफ़ी मांगना चाहता हूं रेवू..। माफ़ी किस बात के लिए..रेवती ने पूछा ..वो..वो मैं तुम्हारे लिए एनिवर्सिरी पर गुलाब का फूल लाना भूल गया था उस बात के लिए..पर सच बताऊं...मैं भूला नहीं था..मैने बुके खरीदा भी था..बाइक पर रख कर...कार्ड गैलरी से कार्ड लेने गया तो..गैलरी बंद हो चुकी थी..और वापस आया तो..तो सारे फूल एक गाय खा चुकी थी क्या???? रेवती ज़ोरदार ठहाका लगाकर हंसने लगी..। बहुत दिनों बाद अभय ने रेवती की खिलखिलाती हंसी सुनी थी...और उसी वक्त खुद से वादा भी कर लिया कि अब कभी इस हंसी को गुम नहीं होने देगा।...एक बार फिर से दोनों को एक दूसरे से सच्चा प्यार हो गया था।









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