Friday, 13 September 2013

मैं हिन्दी हूं




मैं हिन्दी हूं, सिर्फ भाषा नही एक जीवन हूं, जीवनशैली हूं.. पूरब से पश्चिम,उत्तर से दक्षिण तक फैली हूं। हर जाति,धर्म,और भाषा के लोगों के साथ हो ली हूं, किसी की सखा किसी की सहेली हूं। मैं हवा हूं, बादल हूं, परिंदा हूं सिर्फ एक देश नहीं दुनिया के हर कोने में घूमी हूं। मैं हठी नहीं हूं पर आत्मसम्मान मुझे भी है प्यारा। मैं हर परिवेश, महौल और समय में घुलमिल जाती हूं, परिवर्तन सृष्टि का नियम है इसे मैं भी मानती हूं और बदलाव को खुले दिल से मैं भी स्वीकारती हूं।  
मैं हर मां की लोरी में उसके बेटे का दुलार हूं। मैं मंदिर में प्रार्थना, मस्जिद में नमाज़ और गुरूद्वारे की अरदास हूं। प्रेमी के ख़त में प्रेमिका के होठों की मुस्कान हूं। मैं हर चौराहे पर, हर फुटपाथ के कोने पर बैठे बेबस-लाचार की आवाज़ हूं। मैं कई रिश्तों की डोर हूं। कई ग्रंथों की आत्मा हूं। किसी का गर्व तो किसी की जीविका का साधन हूं। मैं सुन्दर हूं, सहज और सरल भी हूं, किसी भी रंग में मैं रंग जाती हूं और जो एक बार मेरे संग हो लेता है मुझमें ही मिल जाता है।
पर कभी कभी मैं भी दुखी और उदास हो जाती हूं। मेरे दुरूपयोग पर बस आंसू बहा कर रह जाती हूं। जब अपशब्दों के तीर किसी को घायल करते हैं तो मेरे भी सीने पर कई शूल मिलते हैं। जब लालच की राजनीति के लिए मुझे भरी सभा में नचाया जाता है तो मैं एक ही दिन में बार बार मरती हूं।

फिर भी मेरे अपनों ने मुझे जिंदा रखा है। मेरे सपनों ने मुझे पंख दिए हैं। मेरा विस्तार निरंतर जारी है, मैं दुनिया पर राज करूं न करूं पर करोंड़ों दिलों की मैं रानी हैं। 

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